पत्थरों से इश्क़(हिंदी ग़ज़ल, कविता)
पत्थरों से इश्क़(ग़ज़ल)
संभल के मिले वो, जो कहते हैं
जोड़े आसमां में बनते है
लगा ऐसा, मिल जाऊँगा धूल के कणों में
तूफानों में कुछ कण आसमां भी छुते है
इस रोशनी की तलाश में घूमे हम
तभी देख, ग़ज़लों में कैसे जुगनू चमकते है
कभी खो ना जाए तू रोशनी के अँधियारो में
तेरी गली में यादों के आफ़ताब लेके चलते है
हो गया है इश्क़ रास्ते के पत्थरों से
ये भी देते है दर्द, जब पैरों में चुभते है
-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'
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