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Showing posts from April, 2020

एक जमीं तू , एक आसमां मैं

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कहाँ मिलोगे (हिंदी कविता, इश्क़) एक जमीं तू, एक आसमां मैं क्षितिज के किस कोने मिलोगे ? मैं बिता पल , तू भविष्य वर्तमान में कहाँ मिलोगे ? तू वक़्त की धार पे मैं मौत के कगार पे सुरमयी सपनो की परछाई अपनो की किस खाई के पार मिलोगे ? एक जमीं तू, एक आसमां मैं क्षितिज के किस कोने मिलोगे ? सवालों की दुनियाँ उत्तर कहाँ खोजती हैं सीरत कुर्बान हो गयी सूरत से अब तोलती हैं एक अश्क़ तकिये पे उतार रखा हैं बिस्तर के किस पार मिलोगे ? एक जमीं तू, एक आसमां मैं क्षितिज के किस कोने मिलोगे ? आँचल लहराओ तो फिजाओं में कुछ बात बने केश बिखराओ तो हवाओ में कुछ बात बने कितनी बसंत आ के चली गयी तुम किस ऋतु के साथ मिलोगे ? एक जमीं तू, एक आसमां मैं क्षितिज के किस कोने मिलोगे ? इस हयात का बिस्तर समेटता हूँ इस पार का ये सफर समेटता हूँ जिस्म की कुछ यादें रखी है मैंने पता है मुझे तुम कहाँ मिलोगे एक जमीं तू, एक आसमां मैं क्षितिज के किस कोने मिलोगे ।              - सोमेन्द्र सिंह 'सोम'

शहर को रोते देखा(hindi kavita, gazal in hindi))

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शहर को रोते देखा (ग़ज़ल, हिंदी कविता) Hindi kavita, gazal in hindi and english font शहर के हाथों शहर की फितरत को खोते देखा बसन्त चाँदनी में शहर को रोते देखा ताजमहल को गढ़ने वाले उन हाथों को आज फिर रोटी के लिए तरसते देखा नया संकल्प नया वक़्त नया आसमां देखा हमनें हाइवे से उतरते हिन्दोस्तां को देखा दो वक़्त की रोटी के लिए आए थे शहरों में दो वक़्त की रोटी के लिए गाँवों की ओर लौटते देखा हे शहरवासियों बचा लो अपने शहरों को 'सोम' ने तो धरा को भी बदलते देखा      shahar ke hathon shahar ki fitarat ko khote dekha  basant chandani mein shahar ko rote dekha tajamahal ko gadhane vale un hathon ko  aaj phir roti ke liye tarasate dekha  naya sankalp naya vaqt naya aasaman dekha  hamane highway se utarate hindustan ko dekha  do vaqt ki roti ke lie aae the shaharo mein do vaqt ki roti ke liye ganvon ki or lautate dekha  he shaharvasiyon bacha lo apane shaharo ko 'som' ne to dhara ko bhi badalate dekha  - सोमेन्द्र सिंह 'सोम'