गद्य व हिंदी गद्य का विकास
गद्य (Prose)
मनुष्य के बोलने, लिखने, पढ़ने की अलंकरणरहित साधारण व व्यवस्थित भाषा जो रचनात्मक व स्पष्टता लिए हो गद्य कही जा सकती है।
गद्य शब्दों के भावात्मक संदर्भों (कविता के सामान) के स्थान पर उनके वस्तुनिष्ठ प्रतीक अर्थ को ग्रहण करता है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है की कविता सर्वथा कथ्य शून्य और गद्य सर्वथा भाव सुनने होता है।
गद्य में भाषा की सारी क्षमताएँ वैचारिक अभिव्यक्ति के अधीन होती हैं। गद्य में कथ्य का महत्व सस्ती भावुकता पर अंकुश का काम करता है। गद्य का अनुशासन भाषा सौंदर्य के बोध का उत्तम साधन है।
कविता और गद्य (Poem and Prose)
अच्छे गद्य के गुणों का होना अच्छी कविता की पहली और कम से कम आवश्यकता है। कविता और गद्य में भावों और रूपों का आदान-प्रदान स्वभाविक है परंतु जहां उनके विशिष्ट धर्मों का बोध नहीं होता वहाँ हमें फूहड़ गद्य व फूहड़ कविता के दर्शन होते हैं। गद्य की लय, कविता की लय से अधिक लोच व विविधता लिए हुए होती हैं। गद्य में लय वाक्य रचना की इकाई मात्र न होकर विचारों की इकाई होती है।
रूपो के विकास के आधार पर गद्य के प्रकार
रूपों के विकास के आधार पर गद्य के तीन प्रकार हैं वर्णनात्मक विवेचनात्मक भावात्मक
- वर्णनात्मक:- कथा, इतिहास, जीवनी, यात्रा,
- विवेचनात्मक:-विज्ञान, सौंदर्यशास्त्र, आलोचना, धर्म, नीति शास्त्र, विधि, राजनीति
- भावात्मक:- इसमें वर्णनात्मक और विवेचनात्मक गद्य के साथ साथ निबंध व नाटक सम्मिलित हैं।
हिंदी गद्य(Hindi Prose)
हिंदी में गद्य और पद्य परस्पर विलोम नहीं बल्कि नदी के पाटो के समांतर चलने वाली रीति रही है। भाषा की बुनियादी इकाई वाक्य है और वाक्य गद्य और पद्य में अलग अलग नहीं होते।
हिंदी गद्य का विकास
गद्य का कार्मिक विकास हिंदी के आरंभ से ही हुआ है। गद्य में व्याकरण के नियमों का प्रयोग आसानी से ग्रहण किया जा सकता है। गद्य साहित्य का हिंदी में पूर्ण रूप आने से पहले क्षेत्रीय भाषाओं में हिंदी गद्य अधिक मिलता है।
- राजस्थानी में हिंदी गद्य
- ब्रज भाषा में हिंदी गद्य
- दक्खिनी हिंदी गद्य
- गुरुमुखी लिपि में हिंदी गद्य
गद्य में नए पुराने सुखी चिकने सभी प्रकार के शब्दों को पचाने की शक्ति होती है। गद्य प्रयोगात्मक है और इसकी विस्तार सीमा अनंत है। गद्य में तेजी से रूप बदलने की शक्ति का अनुमान हिंदी गद्य के तेज विकास से लिया जा सकता है।
आधुनिक हिंदी गद्य साहित्य
हिंदी साहित्य का आधुनिक काल स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना से प्रभावित था। औद्योगिकीकरण, आवागमन के साधनों के विकास के साथ साथ हिंदी साहित्य का भी विकास हुआ। अंग्रेजी व पाश्चात्य शिक्षा का जीवन में प्रभाव पड़ा और यहीं आधुनिक हिंदी साहित्य में दृष्टिगोचर होता है।
ईश्वर के साथ-साथ मानव को तथा भावना के साथ साथ विचारों को प्रधानता मिली। कविता के साथ-साथ गद्य साहित्य का भी विकास हुआ। मीटिंग प्रेस के आते ही साहित्य के क्षेत्र में नई क्रांति की शुरुआत हुई। आधुनिक हिंदी गद्य साहित्य को पांच भागों में बांटा गया
- भारतेंदु पूर्व युग - 1800 ईस्वी से 1850 ईस्वी
- भारतेंदु युग - 1850 ईस्वी से 1900 ईस्वी
- द्विवेदी युग - 1900 ईसवी से 1920 ईस्वी
- रामचंद्र शुक्ल, प्रेमचंद युग - 1920 ईस्वी से 1936 ईस्वी
- अद्यतन युग - 1936 से आगे
गद्य के प्रकार (Types of Prose)
- निबंध
- नाटक
- एकांकी
- उपन्यास
- कहानी
- जीवनी
- आत्मकथा
- संस्मरण
- रेखाचित्र
- रिपोर्ताज
- गद्यकाव्य
- आलोचना
- यात्रावृत्त
- डायरी
- पत्र
- भेंट वार्ता
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