पिछवाई (ग़ज़ल, हिंदी कविता)

पिछवाई (पश्चिमी हवाएं)(हिंदी कविता)

चल रही सांय सांय पवन पिछवाई
कुरेदकर दिल को हालत समझाई

पिटारा खोला जज्बातों के अक्स पे
हमारी मंजूषा ने शब्द लहरी गाई

शब्द उतरते नहीं, कलम से अब
चूम के इनको आदत नई लगाई 

स्याही दर्पण सी, हो गई है अब
जिंदगी के पन्नों पे उसकी ही परछाई

ज़िस्म फ़रियाद करे नए आगाज-ए-वक़्त का 
कहाँ से लाए 'सोम', अब वो हवा पिछवाई

सोमेन्द्र सिंह 'सोम'
 



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