अंतिम यात्रा (hindi kavita on life)

यहाँ स्वरचित 4+ कविताओं का संकलन किया गया है

Hindi kavita on life 

Hindi kavita on life
      

सुबह की लाली नहीं है अब होंठों पे 
नहीं है अब वो तन की खुश्बू 
वो हाथों की नरमाई
वो जिस्म की परछाई 

सुबह का उगना भी है
चिड़ियों का चहकना भी है
अब एक नया राग है , 
चिराग है 
प्रज्वलित है 
शांत है 
सौम्य है
सच है
रुदन भी है 
मर्म भी है
कातर भी है 
पर अनुराग है
हां, ये नया राग है


ये तू नहीं है ज़िन्दगी 
ये तेरी प्यास है
उस पार
इस पार के 
बिच में 
तेरा यही विनाश है


गुस्ताखी की है उस प्रीत से
उस निर्मल चित से
पर तू नहीं है ये सब 
ये वो साया है इस पार 
ले गया है जो उस पार 


ना चेहरे पे भाव है 
ना विकार है 
इस सुखी देह का 
ना अब आकार है 
यही स्थूल है 
यही गौण है
जिसको समेटा सारी जिन्दगी
निराकार वो निर्गुण है


ये जितना शांत है 
उतना ही सच है 
यही इस जिन्दगी का
सबसे बड़ा सच है
जाना वही पाना वही
यहाँ कुछ भी तो नही है

subah ki lali nahin hai ab honthon pe 
nahin hai ab vo tan ki khushbu
vo hathon ki naramai
vo jism ki parachhai 

subah ka ugana bhi hai 
chidiyon ka chahakana bhi hai 
ab ek naya raag hai
chiraag hai 
prajvalit hai 
shaant hai 
saumy hai 
sach hai 
rudan bhi hai 
marm bhi hai 
kaatar bhi hai 
par anuraag hai 
haan, ye naya raag hai 

ye tu nahin hai zindagi 
ye teri pyaas hai 
us paar is paar ke 
bich mein tera yahi vinaash hai

gustakhi ki hai 
us preet se 
us nirmal chit se 
par too nahin hai ye sab 
ye vo saaya hai is paar 
le gaya hai jo us paar 

na chehare pe bhav hai 
na vikar hai 
is sukhi deh ka 
na ab aakaar hai 
yahu sthool hai 
yahi gaun hai 
jisako sameta 
sari jindagi
niraakaar vo nirgun hai 

ye jitana shaant hai 
utana hi sach hai 
yahi is jindagi ka 
sabase bada sach hai 
jaana vahi paana vahi 
yahan kuchh bhi to nahi hai 

        - सोमेन्द्र सिंह 'सोम'



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सुर्ख़ पत्ता(जीवन पर हिंदी कविता )


सुर्ख़ पत्ता टूट कर
अपने प्रियतम से
बैसाखियाँ हवा कि
चल रहा तम में 


कौन कहता है
उसका मोल नही
न जाने कब
मृत जमीं की
सुलगती भूख़ में
खाद का अंकुर बो दे 
कब इस विराने में 
अपना इतिहास खो दे 


जो प्रफुटित होंगे विचार 
वो बलिदान के होंगे
हरा-भरा परिवार बनाएगा
उसके जैसे प्रियतम होंगे 
पेड़ कहलाएगा


या फिर बिछुड़न के दर्द में 
जल कर वहीं रह जाएगा
मिट्टी की तपन में 
उसी का अंश हो जाएगा
सुर्ख़ पत्ता कहलाएगा 


मोल विचार का 
या उसकी प्रक्रिया का ?
सुर्ख़ पत्ता हाथ में लिए
सोचता हूँ मैं 
कौन हूँ मैं ?
सुर्ख़ पत्ता 
या सुर्ख़ पत्ता ?

 surkh patta toot kar 
apane priyatam se 
baisakhiyan hava ki 
chal raha tam mein 

kaun kahata hai 
usaka mol nahi 
na jaane kab 
marit jameen ki
sulagati bhukh mein 
khaad ka ankur bo de 
kab is viraane mein 
apana itihaas kho de 

jo praphutit honge vichaar 
vo balidan ke honge 
hara-bhara parivaar banaega usake jaise priyatam honge 
ped kahalaega 

ya phir bichhudan ke dard mein jal kar vaheen rah jaega 
mitti ki tapan mein 
usee ka ansh ho jaega 
surkh patta kahalayega 

mol vichaar ka ya 
usaki prakriya ka ? 
surkh patta haath mein lie sochata hoon main 
kaun hoon main ? 
surkh patta ya 
surkh patta    


         -सोमेंद्र सिंह 'सोम'



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Kirdar(life poem in hindi)

Life poem in hindi


पहचान है किरदार या 
किरदार में है पहचान


वक़्त के जंजाल में फंसा ये इंसान 
कहाँ है तू और तेरा ईमान 
बेफिक्री की चद्दर उतारे 
या ख्वाबो से जा मिले 
कोई नही सका है जान 




पहली किरण 
भोर की या जुगनू की 
अंत है, या शुरुआत 
विचारो की या ख्वाबों की 
कैसी है ये हयात 


कुछ जिन्दा है हैवान 
किसी का मरने पे है मान 




मुस्कुराने के राज 
हर राज पे मुस्कुराना 
हर पहेली ,हर पहचान 
जवाब है, एक और सवाल 


किसी का अंत है 
कोई नई शुरुआत 
अब क्या इज्जत 
क्या रह गया सम्मान 
पहचान है किरदार या 
किरदार में है पहचान 

pahachan hai kiradar ya
kiradaar mein hai pahachan 

vaqt ke janjaal mein phansa ye insaan 
kahan hai tu aur tera iman bephikri ki chaddar utare 
ya khwabo se ja mile 
koi nahi saka hai jaan 

pahali kiran 
bhor ki ya juganoo ki 
ant hai, ya shuruat 
vicharo ki ya khwabon ki
kaisi hai ye hayat 

kuchh jinda hai haivan
kisi ka marane pe hai maan 

muskurane ke raaj 
har raaj pe muskurana 
har paheli, har pahachan 
javab hai, ek aur saval 

kisi ka ant hai 
koi nai shuruaat 
ab kya ijjat 
kya rah gaya samman 
pahachan hai kiradar ya 
kiradar mein hai pahachan


          -सोमेन्द्र सिंह 'सोम'



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Rajasthani bhajan, marvadi song, rajasthani song

समय बलवान बड़ो (life poetry)

Life poetry

चार रात जाग सपन देखो
अचल प्राण को तर्पण देखो
सुख हाथ म बंद ,भजे दुःख न 
समय तेरो नयो दर्पण देखो ।


समय चलादे मंजला मंजला 
समय सिखादे रस्ता म सिख 


नर तेरो के बड़ो
समय बलवान बड़ो ।।

आँखा निरखतो, घूम रियो जग में
कदम कदम चूमे, गिर रिया पग में
अब बाँस की लाठी पे सोवे है राज
राम-काम ही गया तेरे संग में ।


समय चिनादे कुआँ बावड़ी
समय मंगादे घर घर भीख


नर तेरो के बड़ो
समय बलवान बड़ो ।।

char raat jag sapan dekho 
achal pran ko tarpan dekho 
sukh hath ma band ,bhaje duhkh n 
samay tero nayo darpan dekho . 

samay chalade manjala manjala
samay sikhade rasta ma sikh 

nar tero ke bado 
samay balavaan bado 

aankha nirakhato, ghoom riyo jag mein 
kadam kadam chume, gir riya pag mein 
ab bans ki lathi pe sove hai raaj
ram-kam hi gaya tere sang mein 

samay chinade kuan bavadi samay mangade ghar ghar bheekh 
nar tero ke bado 
samay balavan bado


          - सोमेंद्र सिंह 'सोम'



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