हिंदी ग़ज़ल (hindi gazal)

यहाँ 10 से अधिक ग़ज़लों का संकलन किया गया है।


हिंदी ग़ज़ल 


दरबारों से निकल कर आम आदमी के सुख-दुख की हिस्सेदार बनी ग़ज़ल के जब शाब्दिक अर्थ पर जाते है तो आश्चर्य होता है। ग़ज़ल का शाब्दिक अर्थ है औरतों से या औरतों के बारे में बातें करना। विद्वानों का इस बारे में अलग अलग मत है।


ग़ज़ल एक ही बार में लिखे हुई शेरों का समूह है जिसमें पहले शेर को मतला कहते हैं अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। यह शेर एक दूसरे से जुड़े हुए या स्वतंत्र होते हैं। शेरों की यहीं प्रकृति इन्हें बहु आयामी रूप प्रदान करती है।


वक्त के साथ-साथ ग़ज़ल के भी अलग-अलग स्वरूप सामने आए, इनकी प्रकृति में भी बदलाव हुआ है। जैसे अरबी ग़ज़ल, फ़ारसी ग़ज़ल, उर्दू ग़ज़ल, हिंदी ग़ज़ल।


समकालीन हिंदी ग़ज़ल 


समकालीन हिंदी ग़ज़ल समाज में व्याप्त असंतोष, आक्रोश और अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए लड़ते आम आदमी के संजीदा मसलों को समाये हुए है। समकालीन ग़ज़ल सत्ता से बार बार टकराती है, प्रश्न पूछती है। 


यह तल्ख़ जमीन पर लिखी हुई है। समसामयिक व समकालीन हिंदी ग़ज़ले आम आदमी के खून पसीने से निकली वह बिजलियां है जो सत्ता के ऊंचे ऊंचे बुर्जों को हिलाने का माद्दा रखती है।


समसामयिक व समकालीन हिंदी ग़ज़ले आम आदमी की रोजमर्रा की परेशानियों, मुफ़लिसी, बेरोजगारी और आक्रोश को व्यक्त करती है।


इन्हीं मुद्दों को पाठकों के सामने लाने का एक छोटा सा प्रयास-


हिंदी ग़ज़ल (सियासत सी मोहब्बत)

Hindi gazal in hindi and english font


हिंदी ग़ज़ल

पहले तुम जाती हो उसके बाद आती है

याद, उदासी सी चेहरे पर उतर आती है


मैं तो तेरे इश्क़ का मजदूर हुँ

मेरी हालत अब किसको नजर आती है


तुम सरकारी योजनाओं सी हो

अब बस तुम्हारी खबर आती है


मोहब्बत छिपाना सियासत के गिद्धों से

सियासत को सिर्फ सियासत नजर आती है


इश्क़ है तभी जबां मुँह में है

सियासत में तो जबां काट दी जाती है


pahale tum jati ho usake bad aati hai yaad, udasi si chehare par utar aati hai main to tere ishq ka majadur hun meri halat ab kisako najar aati hai tum sarakari yojanao si ho ab bas tumhari khabar aati hai mohabbat chhipana siyasat ke giddhon se siyasat ko sirph siyasat najar aati hai ishq hai tabhi jabaan munh mein hai siyaasat mein jaban kaat di jati hai


-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'


हिंदी ग़ज़ल (थोड़ा तो हिंदुस्तान मानता होगा)

वो जब भी खुद के अंदर झाँकता होगा
खुद की तस्वीर देखकर काँपता होगा

पत्थरों को भी भगवान मानने वाला वो
क्या इंसान को इंसान भी मानता होगा

Wo jab bhi khud ke andar jhankta hoga
Khud ki taswir dekhkar kanpta hoga

Pattharo ko bhagawan manane wala wo
Kya insan ko insan manta hoga
                    सम्पूर्ण ग़ज़ल पढ़े

-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'


हिंदी ग़ज़ल (रोते देखा)


शहर के हाथों शहर की फितरत को खोते देखा

बसन्त चाँदनी में शहर को रोते देखा


ताजमहल को गढ़ने वाले उन हाथों को

आज फिर रोटी के लिए तरसते देखा


Shahar ke hatho shahar ki fitrat ko khote dekha
Basant chadni me shahar ko rote dekha

Tajmahal ko gadhne wale un hatho ko
Aaj fir roti ke liye tarsate dekha
                    सम्पूर्ण ग़ज़ल पढ़े

-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'

हिंदी ग़ज़ल (इंसान बनना बाकी है)

ज़ज्बातों में जान बाकी है
कलम और तलवार दोनो बाकी है


इमारतें ही इमारते बन गयी है मेरे शहर में

मेरे शहर को, इंसान बनना बाकी हैं

Jajbato me jan baki h

Kalam aur talwar dono baki h


Imarate hi imarate ban gyi mere shahar me

Mere shahar ko insan banana baki h

सम्पूर्ण ग़ज़ल पढ़े


-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'


हिंदी ग़ज़ल (मुफ़लिसी का दौर है)


ये सब दिमाग का शौर है

दिल मे सरफ़रोशी का दौर है


वो कहाँ, मैं कहाँ, पथ बिखरे

बेजुबां आजमाइशों का दौर हैं


इधर आवो तो आसमां भी ले आना

जमीं पे मुफ़लिसी का दौर है


अब ज्यादा क्या कहे 'सोम' 

दिलेबात दिल मे रखने का दौर हैं 


Ye sab dimag ka shor h

Dil me sarfroshi ka daur h


Wo kha, mai kha, path bhikhre

Bejuban aajmaiso ka daur h


Idhar aao to asman bhi le aana

Jamin pe muflisi ka daur h


Ab jayada kya khe 'som'

Dile bat dil me rakhne ka daur h

                  सम्पूर्ण ग़ज़ल पढ़े

-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'


हिंदी ग़ज़ल (बेइंतहा रहने दो)


जिंदगी बेइंतहा बेइंतहा रहने दो

तुम पास न आवो दूर ही रहने दो


इतनी सजा ना दो बेपरवाह रात की

बिस्तर में थोड़ी सलवटें तो रहने दो


Jindgi beintah beintah rahne do

Tum pas na aao dur hi rhne do


Itni saja na do beprvah rat ki

Bistar me thodi salavte to rhne do

सम्पूर्ण ग़ज़ल पढ़े

-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'



पत्थरों से इश्क़(हिंदी ग़ज़ल)

कभी खो ना जाए तू रोशनी के अँधियारो में
तेरी गली में यादों के आफ़ताब लेके चलते है

हो गया है इश्क़ रास्ते के पत्थरों से
ये भी देते है दर्द, जब पैरों में चुभते है

Kabhi kho na jaye tu roshani ke andhiyaro me
Teri gali me yado ke aaftab leke chalte hai

Ho gya h isq raste pattharo se
Ye bhi dete h dard jab pairo me chubate hai


 -सोमेन्द्र सिंह 'सोम'

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