इंसान बनना बाकी है(hindi kavita on life)


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जान बाकी है(ग़ज़ल, जिंदगी पर कविता)

ज़िन्दगी एक कविता


जज्बातों मे जान बाकी है
कलम और तलवार दोनो बाकी है

है जिन्हें मंजिलों से इश्क़
उनका अभी इश्क़ होना ही बाकी है

जन्नत की खूबसूरती पे क्या कहे
उनकी बाहों में जाना बाकी है

बेमौसम बोए है अरमानों के बीज
अभी इनका पेड़ बनना बाकी हैं

इमारतें ही इमारते बन गयी है मेरे शहर में
मेरे शहर को, इंसान बनना बाकी हैं

इस सोई रात पे गुरुर कैसा
अभी दिए को पंक्ति में आना बाकी है

वक़्त लौट कर नही आता, ये देखा है
वक़्त दोहराता है, ये देखना बाक़ी है

jajbaton me jaan baki hai 
kalam aur talavar dono baaki hai

hai jinhen manjilo se ishq 
unaka abhi ishq hona hi baki hai

jannat ki khubasurati pe kya kahe unaki bahon mein jana baki hai

bemausam boye hai aramano ke beej 
abhi inaka ped banna baki hain

imarate hi imarate ban gayi hai mere shahar mein 
mere shahar ko, insaan banna baki hai

is soi raat pe gurur kaisa 
abhi diye ko pankti mein aana baki hai 

vaqt laut kar nahi aata, ye dekha hai 
vaqt doharata hai, ye dekhana baki hai


-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'

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मौसमों से बारिश की दुआये करता हूँ 
वक़्त कि भीगी रातों से डरता हूँ


महबूब की कजलाती आँखों के सवाल 
मोहब्बत में ना जाने क्या क्या कहता हूँ 


मैं फकीर दीपक ढका तेरे आँचल में
तेरे लबो से आते झोंको में शायरी करता हूँ 


ये कसूर मेरे अफ़साने का है
जो महसूस किया वही तो कहता हूँ

Mausamo se barish ki duayen karata hon 
vaqt ki bhegi raton se darta hon 

mahabob ki kajalati aankhon ke saval 
mohabbat mein na jane kya kya kahata hoon 

main phaker dipak dhaka tere aanchal mein 
tere labo se aate jhonko mein shayari karata hoon 

ye kasur mere afsane ka h
jo mahsus kiya whi to khta hun


-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'


      


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अब उनसे मुलाकात नही होती (कविता जीवन पर)


कान चिपके रहते है तुम्हारे दिवारो पे 
आँखे तुम्हारी भी महफूज नही होती |


अपनी करतूतो को कब तक वक़्त की बात कहोगे
जरूरते बदलती है, इच्छाए खत्म नहीं होती | 


कुछ उसूल है वक़्त के भी आने जाने के 
मर जाता है इंसान, अकड़ ख़त्म नही होती | 


हाथो में हाथ लेके जो जिंदगी भर का वादा कर गए 
मुद्दते बित गयी, अब उनसे मुलाकात नही होती |


कोशिश करता है 'सोम' दुनिया को समझने की 
भले ही उसको खुद के दिल की खबर नही होती |

kaan chipake rahate hai tumhare divaro pe 
aankhe tumhari bhi mahaphoj nahi hoti  

apani karatuto ko kab tak vaqt ki baat kahoge 
jarurate badalati hai, ichhaye khatm nahin hoti

kuchh usul hai vaqt ke bhi aane jane ke 
mar jaata hai insaan, akad khatm nahi hoti

haathon mein haath leke jo jindagi bhar ka vada kar gaye
muddate bit gayi, ab unase mulakat nahi hoti 

koshish karata hai 'som' duniya ko samajhane ki 
bhale hi usako khud ke dil ki khabar nahi hoti

-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'



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चलते जाना (हिंदी कविता )


सुरमयी सपनों की सरस सरिता 
मुझे वक़्त दो तुझमे घुलने का


दावानल नहीं, दरीचा हूँ दरिया का 
पंकज-पाणी सा पाक हो जाने का


आना अगर अल्फाज़ो के अंधेरो से 
राहे-रोशनी में मत खो जाना


तू क़ाबिल है चलने के ,चलते जाना 
ना इधर आना, न उधर जाना


सरिता - नदी
दावानल - जंगल की आग
पंकज पाणी- कमल रूपी हाथ
पाक - शुद्ध
अल्फाज- शब्द

suramayi sapano ki saras sarita
mujhe vaqt do tujhame ghulane ka 

davanal nahi, daricha hoon dariya ka 
pankaj-pani sa paak ho jaane ka 

aana agar alphazo ke andhero se raahe-roshani mein mat kho jaana 

tu qaabil hai chalane ke, chalate jaana na idhar aana ,na udhar jaana

-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'


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एहसास ( ज़िन्दगी एक कविता)

एक कलम तस्करी की 
एक पन्ना चोरी का 
बस एक सच है 
जो अपना है 
एक अहसास तेरे होने का 
तेरे जाने का
तुझसे गुफ्तगू का 


एक अहसास तुझे पाने का 
तुझे खोने का 
तुझमे मिल जाने का 


इसका कोई नाम नही 

ek kalam taskari ki 
ek panna chori ka 
bas ek sach hai 
jo apana hai 
ek ahasas 
tere hone ka 
tere jaane ka 
tujhase guphtagu ka 

ek ahasaas tujhe paane ka 
tujhe khone ka 
tujhame mil jaane ka

isaka koi naam nahi
 



          -सोमेन्द्र सिंह 'सोम'


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पाऊँ भी तो कैसे(hindi kavita about life)


यादें भी गूँथी हुई है रिश्तों की तरह
पर तू तो एक अहसास है
तुझे बाँधु भी तो कैसे 


लपटों में गिरे अश्को की तरह
तू तो बस एक ख़्वाब है
तुझे मानू भी तो कैसे


तेरे जिस्म को समेटा है मोतियों की तरह
ये तो बस एक राख है 
अब बता
तुझे पाऊँ भी तो कैसे

yadain bhi gunthi hui hai rishton ki tarah, 
par tu to ek ahasas hai, 
tujhe bandhu bhi to kaise 

lapaton mein gire ashko ki tarah , tu to bas ek khwab hain, 
tujhe manu bhi to kaise... 

tere jism ko sameta hai motiyon ki tarah,  
ye to bas ek raakh hai ab bata , tujhe paoon bhi to kaise



           -सोमेंद्र सिंह 'सोम'


Dard bhari kavita, दर्द भरी शायरी
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Bahut bar aisa hota h ki Ham Waqt Ke sath Chalte Chalte apne Kartavya se vimukh Ho Jaate Hain. Yeh jivan ki gati hamain Aise Mod per pahuncha Deti Hai Jahan per Ham Apne aapko dekh Nahin paate Ham kahan hai .


Yah jaruri hai ki Waqt Ke Sath Chalte huye Hamein dusron ka bhi Dhyan Rakhna h. Kahin Aisa Na Ho ki Ham is bhagamabag me apne hi pairo ke niche apno ko hi kuchal de.


Hamein in sb kirya partikiryao se phle insani majhab ka jama pahnana hoga .


हमें सबसे पहले इंसान बनना होगा।


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