थोड़ा तो हिंदुस्तान मानता होगा (गज़ल)( hindi kavita on majdur)(मज़दूर ग़ज़ल)
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संकट की इस घड़ी में जब सारे देशवासी एकजुट होकर महामारी से लड़ने का प्रयास कर रहे थे । तभी कुछ लोग अपनी सामान्य जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हो गए तथा वे खाने की तलाश में, अपने बच्चों को भूखमरी से बचाने के लिए वापिस अपने राज्य, अपने शहर, अपने गांव को लौटने लगे।
हमने भारत का सबसे बड़ा अंतरराज्यीय पलायन होते देखा। आजादी के बाद का सबसे बड़ा पलायन हुआ। बहुत से लोगों ने इनकी सहायता की तथा इनको अपने स्थान तक सकुशल पहुंचाने में मदद की।
परंतु सियासतदारो का एक तबगा फिर भी राजनीति से बाज नहीं आया और सारी गलती इस हिंदुस्तान पर डाल दी जो दो वक्त की रोटी के लिए सड़कों पर निकल पड़ा था। इन्ही सियासतदारों की हकीकत को बयां करने का प्रयास करती एक कविता।
हिंदुस्तान मानता होगा(ज़िन्दगी पर हिंदी कविता, मजदूरों पर ग़ज़ल)
वो जब भी खुद के अंदर झाँकता होगा
खुद की तस्वीर देखकर काँपता होगा
मैं आईना तो नहीं, छाँव भर हुँ
वह मुझे थोड़ा तो हिंदुस्तान मानता होगा
तू कबीर तू रैदास तू ही शंकर
पर क्या वो तुझे पहचानता होगा
आज उसकी आँखों मे पानी नहीं है, लगता है
वो मजदूरों को भी हिन्दू-मुसलमान मानता होगा
हाथो में चराग़ लिए रावण आ रहे हैं
उन्हें भी वह राम मानता होगा
पत्थरों को भी भगवान मानने वाला वो
क्या इंसान को इंसान भी मानता होगा
निर्लज्ज सियासत के पीढ़ीदर है ये
जानवर है, सबको जानवर ही मानता होगा
vo jab bhi khud ke andar jhankata hoga
khud ki tasvir dekhakar kanpata hoga
main aaena to nahin, chhaanv bhar hun
vah mujhe thoda to hindustaan manata hoga
Tu kabir tu raidas tu hi shankar
par kya vo tujhe pahachanata hoga
Aaj usaki aankhon me pani nahin hai,
lagata hai
vo majaduron ko bhi hindu-musalaman manata hoga
haatho mein charag lie ravan aa rahe hain
unhen bhi vah ram manata hoga
Patharon ko bhi bhagavan manane vaala wo
kya insaan ko insaan bhi manata hoga
Nirlaj siyasat ke pidhidar hai ye
janavar hai , sabako janavar hi manata hoga
-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'
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Ye ek masterpiece hai
ReplyDeleteयह तो बहुत बड़ी बात कह दी शर्माजी आपने
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
I'm dazed! This is so poignant, I can't appreciate it enough.
ReplyDeleteशुक्रिया इस मर्म को समझने के लिए
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