नव वर्ष नव संवत्सर(हिंदी नववर्ष पर कविता)
नव वर्ष नव संवत्सर नव जीवन को आह्वान दो तोड़ के सारी रंजिशें, अपने अंश को तुम सम्मान दो | आन बान शान ले , हो चुके है कुर्बान वे आज धरा पे उतार के , उनको नया जीवनदान दो संस्कृति तुम इंसान की ही सभ्यता हो, जिजीविषा में ही तुम सौम्यता हो ठोकरों में पले उस फूल को, आज तुम एक नई जान दो धर्म स्वाहा, जाति स्वाहा, सम्प्रदाय स्वाहा, जल रहा हमारा भविष्य है इंसान को बस तुम इंसान रहने दो, यही जिंदगी का विषय है पैरों तले कुचले उन परो को, आज तुम नई उड़ान दो नव वर्ष नव संवत्सर नव जीवन को आह्वान दो | -सोमेन्द्र सिंह 'सोम'