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Showing posts from March, 2020

यादें लेकर आता हूँ

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लहरो को समेटो, दरिया लेकर आता हूँ रुको, कहाँ चले, रस्ते लेकर आता हूँ मेरी बदनसीबी का शिकवा मत करो हाथों की लकीरें लेकर आता हूँ तुमसे मोहब्बत है, तुमसे मिलना भी है चलो कुछ बहाने लेकर आता हूँ तुम्हारे जवां गालों पे उदासी अच्छी नही तुम्हारे बचपन की यादें लेकर आता हूँ यूँ ना मुझसे रूठा करो इश्क़-ए-मरहम तुम्हारे सपनो के अल्फाज लेकर आता हूँ तन्हाई में 'सोम' संग बिताये कुछ पल उन पलों से तेरे दिल का पता लेकर आता हूँ              - सोमेन्द्र सिंह 'सोम'

विधायक के घर कविता मंचन(chunavi kavita)

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Chunav par kavita, chunavi sayari A poem that tries to show the reality of the society, in which the distinction between the words and actions of the leaders is told. एक कविता जो समाज की वास्तविकता को दिखाने की कोशिश करती है, जिसमें नेताओं के शब्दों और कार्यों के बीच का अंतर बताया गया है।  कविता जीवन पर, मेरी जिंदगी कविता, परेशानी पर कविता, नेताओं पर कविता, चुनावी कविता नेताओं पर कविता तड़पते समाज की रूपरेखा बन रही है विस्की के प्यालो में आज विधायक के घर कविता का मंचन हुआ कुछ ठहाके लगे होंगे कुछ बेवक़्त रोये होंगे कुछ गोश्त के टुकड़ों पे विस्की डाले सोये होंगे सुबह एक किसान के मरने की खबर छपी अखबार पे रख बिस्किट का टुकड़ा कुत्ते को डाला होगा फिर मोर्निंग वॉक पे जाते सामने गली के मैनहोल में नंगे बदन, तुम्हारी गंदगी से लथपथ जिस्म लिए उस लड़के को बिना सुरक्षा के उतारा होगा तुम्हारे साथ खड़े वो चार अफसर, उनको संविधान का पाठ पढ़ाया होगा उस बच्ची की घटनाओं को जातीय जामा पहनाकर उस भीड़ में उस पीपल के पेड़ पर कितनी आसानी से लटकाया होगा वो संविधान जिसकी शपथ ली थी कल तुमने उसकी सुरक्षा, उस पुल...

आदतें बदली जा रहीं है(ग़ज़ल)

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आदतें बदली जा रही है (hindi sayari sad, gazal) आहिस्ता आहिस्ता जिंदगी, छोड़े जा रही है लम्हा लम्हा जिंदगी, सब कुछ चुरा रही है रूठ जाते हैं लोग बिना कुछ कहे ही दिलेबात , जबां नही समझ पा रही है वक़्त सो रहा है, बिना करवट के बिस्तरों में अब सलवटें नहींं आ रही है वो कौनसी परछाई है जुगनू की जो खुद से खुद को जला रही है लिपट के बादलों से सूरज ने कहा मेरी तपन बरदाश्त के बाहर जा रही है रूह का भी कुछ ठौर है, ठिकाना है धीरे धीरे उसके पास जा रही है जमीं पे चलते है लोग रुसवाई लिए रुसवा न हुए तो आदते बदली जा रही है aahista aahista jindagi,chhode ja rahee hai  lamha lamha jindagi, sab kuchh chura rahi hai  rooth jaate hain log bina kuchh kahe hi dilebaat , jabaan nahee samajh pa rahee hai  vaqt so raha hai, bina karavat ke  bistaron mein ab salavaten nahi aa rahi hai  Wo kaunasi parachhi hai jugano ki jo khud se khud ko jala rahi hai  lipat ke badalon se sooraj ne kaha meri tapan baradasht ke bahar ja rahi hai  rooh ka bhi kuchh thaur hai, thikaana hai  dhe...

इंसान बनना बाकी है(hindi kavita on life)

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Hindi kavita on life, hindi kavita, hindi kavita on love, हिंदी कविता, हिंदी कविता संग्रह, हिंदी कवितायें, हिंदी कविता प्रकृति (इंसानी), ग़ज़ल, ग़ज़ल हिंदी जान बाकी है(ग़ज़ल, जिंदगी पर कविता) जज्बातों मे जान बाकी है कलम और तलवार दोनो बाकी है है जिन्हें मंजिलों से इश्क़ उनका अभी इश्क़ होना ही बाकी है जन्नत की खूबसूरती पे क्या कहे उनकी बाहों में जाना बाकी है बेमौसम बोए है अरमानों के बीज अभी इनका पेड़ बनना बाकी हैं इमारतें ही इमारते बन गयी है मेरे शहर में मेरे शहर को, इंसान बनना बाकी हैं इस सोई रात पे गुरुर कैसा अभी दिए को पंक्ति में आना बाकी है वक़्त लौट कर नही आता, ये देखा है वक़्त दोहराता है, ये देखना बाक़ी है jajbaton me jaan baki hai  kalam aur talavar dono baaki hai hai jinhen manjilo se ishq  unaka abhi ishq hona hi baki hai jannat ki khubasurati pe kya kahe unaki bahon mein jana baki hai bemausam boye hai aramano ke beej  abhi inaka ped banna baki hain imarate hi imarate ban gayi hai mere shahar mein  mere shahar ko, insaan banna baki hai is soi raat pe gurur kaisa...