आदतें बदली जा रहीं है(ग़ज़ल)

आदतें बदली जा रही है (hindi sayari sad, gazal)

ग़ज़ल



आहिस्ता आहिस्ता जिंदगी, छोड़े जा रही है
लम्हा लम्हा जिंदगी, सब कुछ चुरा रही है

रूठ जाते हैं लोग बिना कुछ कहे ही
दिलेबात , जबां नही समझ पा रही है

वक़्त सो रहा है, बिना करवट के
बिस्तरों में अब सलवटें नहींं आ रही है

वो कौनसी परछाई है जुगनू की
जो खुद से खुद को जला रही है

लिपट के बादलों से सूरज ने कहा
मेरी तपन बरदाश्त के बाहर जा रही है

रूह का भी कुछ ठौर है, ठिकाना है
धीरे धीरे उसके पास जा रही है

जमीं पे चलते है लोग रुसवाई लिए
रुसवा न हुए तो आदते बदली जा रही है

aahista aahista jindagi,chhode ja rahee hai 
lamha lamha jindagi, sab kuchh chura rahi hai 

rooth jaate hain log bina kuchh kahe hi
dilebaat , jabaan nahee samajh pa rahee hai 

vaqt so raha hai, bina karavat ke 
bistaron mein ab salavaten nahi aa rahi hai 

Wo kaunasi parachhi hai jugano ki
jo khud se khud ko jala rahi hai 

lipat ke badalon se sooraj ne kaha
meri tapan baradasht ke bahar ja rahi hai 

rooh ka bhi kuchh thaur hai, thikaana hai 
dheere dheere usake paas ja rahi hai 

jameen pe chalate hai log rusavai lie
rusava na hue to aadate badalee ja rahee hai 

        -सोमेन्द्र सिंह 'सोम'



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