जीना सीख रहा हूँ (hindi kavita on life)

Hindi kavita (शज़र की छाँव में)





जीना सीख रहा हूँ(ग़ज़ल, हिंदी कविता)
(जिंदगी पर हिंदी कविता)





शज़र की छाँव में जीना सीख रहा हूँ
तिनके के सहारे चलना सीख रहा हूँ
(Shajar ki chhanv me jeena shikh rha hun,
Tinke ke sahare chalna shikh rha hun)


एहसासों के बीच में फंसा
ज़िन्दगी तेरी बारीकियां सीख रहा हूँ
(Ahsaso ke bhich fansa
Jindgi teri barikiyan shikh rha hun)


तेरे बाँहों के दरमियाँ रहकर 
खुद को खुद में जीना सीख रहा हुँ 
( Tere banho ke darimiyan rahkar
Khud ko khud me jeena shikh rha hun)


अपनी अँगुलियों की हरकतों को अपनी तरफ रख 
मै तो जिस्म को तेरे दिल की धड़कनों से जोड़ना सीख रहा हुँ
(Apni anguliyo ki harkato ko apni tarf rakh,
Main to jism ko tere dil ki dharkano se jodna shikh rha hun)


ख़्वाबों में मिलना और ख़्वाबों में आना 
इन ख़्वाबों में रहकर तेरे ख़्वाबों में जीना सीख रहा हूँ 
(Khwabo me milna aur khwabo me aana,
In khwabo me rahakar tere khwabo me jeena sikh rha hun)


कब तक दूर रहेगा पतंगा लपटो से 
हे दीपक तेरी रोशनी में जाना सीख रहा हूँ 
(Kab tak dur rahega patanga lapato se,
He deepak teri roshani me jana shikh rha hun)


तेरी ज़िन्दगी तेरे अरमान कहा है तू 'सोम'
खुद को तोड़कर रिश्तों को जोड़ना सीख रहा हूँ 
(Teri jindgi tere arman kha h tu 'som',
Khud ko todkar rishto ko jodna shikh rha hun)



           -सोमेन्द्र सिंह 'सोम'


शज़र- पेड़ (tree)

 

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