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Showing posts from August, 2020

नदी, समुंद्र, चाँद और तुम

प्यार- एक यात्रा (1) नदी, समुंद्र, चाँद और तुम समुंद्र बहुत गहरा होता है, और शांत होता है। लेकिन नदियाँ चंचल होती है, कलकल करके बहती है और आकर समुंद्र में मिल जाती है। अब तो शायद समुंद्र को भी याद नहीं होगा कि कितनी नदियाँ उसमें समा चुकी है? कितना भाग्यशाली है ना समुंद्र की उस से इतनी नदियाँ प्यार करती है और उसे अपनी नियति बना लेती है। हर बाधा को पार करके पत्थरों को काटती जंगलों और बीहड़ से रास्ता बनाती हुई बिना रुके चलती ही जाती है अपने प्यार के रास्ते पर,  अपने प्यार से मिलने । लोग समंदर को बेवफा कहते है क्योंकि वो जाने कितनी नदियों से मिलता है, और वो उससे बिना शर्त प्यार करती है। जैसे मेरा प्यार है तुम्हारे लिए ओर तुम हो उस समन्दर की तरह पर कोई नहीं जानता कि वह उनसे प्यार करता भी या नहीं, जैसे मैं नहीं जानती कि तुम प्यार करते भी हो या नहीं पर फिर भी नदी की तरह चली आती हूँ तुम्हारे पास। लेकिन यहीं तो प्यार है शायद लेकिन समन्दर का क्या क्या सचमुच वो बेवफा है? पता नहीं पर वो खामोश हैं तुम्हारी तरह, या तुम खामोश रहते हो समंदर की तरह। समन्दर तो खामोश रहकर जाने कितने ही राज, कितनी ही ...

माँ (हिंदी कविता)

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वो  जो  तपता  है, धूप  के  तले राहगीर को छाँव मयस्सर उसके तले पलकों पे आई वो ओंस की बूँद, छु ना सकी मुझको  जब तलक थे हम, माँ के हाथ के तले दोस्ती, दौलत, दीवार, दुश्मनी, सबके जाम बना लिए हजारों जिंदादिली ढूंढने अब वो, गाँव की ओर चले शैतानी मयखानों की अट्ठाहसो से जान ले तू  मिट्टी से निकलके ,  मिट्टी तक ही चले नींद, बैचैनी, भूख, दर्द की इंतेहा उस माँ से पूछ  भूखे सोये है उसके बच्चे खुले आसमां के तले  हे दुनियाँ, एक झलक में तूने सब पिला दी 'सोम'  बेखबर हम तुमसे,पुरे रस्ते मदहोस होके चले            सोमेन्द्र सिंह 'सोम'

इंसान का मोल(हिंदी कविता)

 भगवान ने इंसान बनाया  इंसान ने धर्म बनाया  धर्म ने धर्म गुरु बनाएं  धर्मगुरुओं ने शिष्य बनाएं  शिष्य आपस में लड़ने लगे फिर शिष्यों ने अपने अपने  अलग भगवान बनाएं  उन भगवानों ने इंसान बनाएं फिर सबके भगवान संकट में आ गए फिर इंसान लड़ने लगे भगवान, धर्म जिंदा रहे  इंसान का मोल नहीं रहा  अदृश्य अनियमित जिंदा रहे जीवित चीज का मोल नहीं रहा

फ़ितरत(हिंदी कविता)

 दर्द बिखरे पड़े है कतरन में  घाव हरे हुए हमारी फितरत में चाहा क्या था  जो तुझको मिला नही  दुसरो के दर्द का है तुझको गिला नहीं  इस प्यारी दुनिया में क्यों जीते हो नफरत में मिलना भी नसीब नहीं होगा जन्नत में दो पल की जिंदगी  में थोड़ी सी हंसी है  फिर क्यों ये जिंदगी  गम की सी है  इन बेजां दिलो को मिला दे तू महोब्बत  में महोब्बत को भूल पाना नही है हमारी फितरत में