नदी, समुंद्र, चाँद और तुम


प्यार- एक यात्रा (1)

नदी, समुंद्र, चाँद और तुम

समुंद्र बहुत गहरा होता है, और शांत होता है। लेकिन नदियाँ चंचल होती है, कलकल करके बहती है और आकर समुंद्र में मिल जाती है। अब तो शायद समुंद्र को भी याद नहीं होगा कि कितनी नदियाँ उसमें समा चुकी है?

कितना भाग्यशाली है ना समुंद्र की उस से इतनी नदियाँ प्यार करती है और उसे अपनी नियति बना लेती है।

हर बाधा को पार करके
पत्थरों को काटती
जंगलों और बीहड़ से
रास्ता बनाती हुई
बिना रुके चलती ही जाती है
अपने प्यार के रास्ते पर, 
अपने प्यार से मिलने ।

लोग समंदर को बेवफा कहते है क्योंकि वो जाने कितनी नदियों से मिलता है, और वो उससे बिना शर्त प्यार करती है।

जैसे मेरा प्यार है तुम्हारे लिए ओर तुम हो उस समन्दर की तरह
पर कोई नहीं जानता कि वह उनसे प्यार करता भी या नहीं,
जैसे मैं नहीं जानती कि तुम प्यार करते भी हो या नहीं
पर फिर भी नदी की तरह चली आती हूँ तुम्हारे पास।

लेकिन यहीं तो प्यार है शायद
लेकिन समन्दर का क्या
क्या सचमुच वो बेवफा है?

पता नहीं पर वो खामोश हैं तुम्हारी तरह,
या तुम खामोश रहते हो समंदर की तरह।
समन्दर तो खामोश रहकर जाने कितने ही राज, कितनी ही बाते छुपाएं अपना प्यार निभा रहा है। नदियों के साथ नहीं, चांद के साथ।

वो चांद से प्यार करता है, इसलिए खामोश हैं। मतलब तुम भी किसी और से प्यार करते हो समन्दर की तरह?

जिस प्यार को वो कभी कभी बेक़रार होकर ज्वारभाटा बन के दिखाता है, मगर वो प्यार मुकम्मल नहीं हो पाता। फिर भी वो प्यार करता है। चांद से बहुत सी बातें कहना चाहता है, पर वो चांद तक पहुँच नहीं पाता इसलिए खामोश है।

और चांद, शायद वो भी किसी से प्यार करता है पर बेशक वो प्यार समन्दर तो नहीं।

इन सब की तरह मैं भी अपना प्यार निभा रही हूँ अपने दायरे में रहकर, बस यूँ ही खामोश रह कर।

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