माँ (हिंदी कविता)
वो जो तपता है, धूप के तले
राहगीर को छाँव मयस्सर उसके तले
पलकों पे आई वो ओंस की बूँद, छु ना सकी मुझको
जब तलक थे हम, माँ के हाथ के तले
दोस्ती, दौलत, दीवार, दुश्मनी, सबके जाम बना लिए हजारों
जिंदादिली ढूंढने अब वो, गाँव की ओर चले
शैतानी मयखानों की अट्ठाहसो से जान ले तू
मिट्टी से निकलके , मिट्टी तक ही चले
नींद, बैचैनी, भूख, दर्द की इंतेहा उस माँ से पूछ
भूखे सोये है उसके बच्चे खुले आसमां के तले
हे दुनियाँ, एक झलक में तूने सब पिला दी 'सोम'
बेखबर हम तुमसे,पुरे रस्ते मदहोस होके चले
सोमेन्द्र सिंह 'सोम'
Very heart touching 👌👌👌👌
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