सोचा नहीं था (हिंदी ग़ज़ल, नज़्म))

सोचा नहीं था (हिंदी ग़ज़ल , हिंदी कविता, नज़्म)
सोचा नहीं था


तुमसे नजरे मिलेगी सोचा नही था
तुमसे मुलाकात होगी सोचा नही था
तुमको पसन्द आएंगे सोचा नही था
तुम गोद मे सर रखके गाओगे सोचा नही था

नजरो के प्यालो से पी रहे है
जिस्म धुंआ उगलता है
वो बैठे हैं बगल में
तीर सीने से निकलता है

हल्की कंपकपी में कम्बल खिसक रही है
छत रुकी है मुंडेर सरक रही है
लफ्जो की सुगबुगाहट में दिल मिल रहे हैं
कहने को दो सांसे है  एक हो रही है

मुंडेर पे यूँ हाथ मिल जाएंगे सोचा नही था
दो कम्बल एक हो जाएंगे सोचा नही था
ठंडी राते सावन बन जाएगी सोचा नही था
तुम ऐसे सीने लग जाओगी सोचा नही था

एक रात में जिंदगी कहदी 
जिंदगी भर जो न कह पाए
उस एक पल में जिंदगी भर के
हसीन पल साथ गुनगुनाये
कुछ लफ्जो ने कही कुछ नजरो ने पढ़ी
कुछ धड़कनो के मायने सर्द हवा ने समझाये

तुम चाँद की तरह छुप जाओगे सोचा नही था
तुम आंसू पी जाओगे सोचा नही था
बंद आंखों से मुस्कुराओगे सोचा नही था
अलविदा कह पाओगे सोचा नही था
तुम मिल पाओगे सोचा नही था

-सोमेन्द्र सिंह 'सोम'


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