प्यार- एक यात्रा (2)

चाय सा है यह इश्क़

चाय सा है यह इश्क़, सुबह पहले पल से लेकर, शाम आखिरी पहर तक मुझे यह चाहिए।

जैसे उसके ना मिलने से कमी खलती है वैसे ही तुम्हारे ना होने से सब अधुरा लगता है। जैसे ये उबलती है वैसे ही उबलते है मेरे जज़्बात, तुम्हें किसी ओर के साथ देखकर।

इसके धुँए में उड़ते देखा है अक्सर अपनी ख्वाहिशों को मैंने। यह हर रंग में ढली है पर मुझे इसका थोड़ा हल्का सा गहरा रंग ही पसंद है। कभी कभी ये कड़क सी लगती है, तुम्हारे रवैए की तरह। कभी कभी चीनी सी मिठास जैसे मेरे लिए तुम्हारी परवाह

तुम कहते हो क्या रखा इसमें ?

एक खूबसूरत एहसास है जब तुम नहीं होते तब ये मेरे साथ होती हैं।
शाम के बादलों के साथ, 
सुबह में रोशनी के साथ,
बारिश की हल्की बूंदो के साथ,
ज़िन्दगी के तूफानों के साथ,
रात के चांद के साथ।

अंधेरे में तन्हा बैठकर चाय के साथ अनगिनत ख्वाब बुनने का मजा ही कुछ और होता है।

इसकी तलब वैसी ही है जैसे कभी कभार तुम्हें देखने को दरवाजे से नजर टिकाए मेरी खामोश आंखे होती है। इसकी लत मुझे तुमसे भी ज्यादा थी क्योंकि तुम भी मेरे लिए इसी की तरह अज़ीज़ हो।

पर अब तो 'शायद'

'शायद' कितना अच्छा शब्द होता है ना, एक शब्द जिसमें खुशी और गम दोनो समाए हुए है।

'शायद' खुशी में ग़म और ग़म में खुशी ढूंढ ही लेता है।

Comments

  1. Bahut hi khubsurat lafzon main piroya h 👌👌👌👌👌👍👍👍👍👍👍👍

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